आज़ादी, स्वंतंत्रता, स्वाधीनता...
कई नाम से हमने इसे जाना है।
पर आखिर क्या है इसकी अहमियत ?
क्या इसका सही अर्थ हमने पहचाना है?
माँ की कोख से रिहा होकर
आज़ादी का पहला लुत्फ हम उठाते है।
पर ज़िन्दगी की भंवर में गोते खाकर
माँ से अलग होने की शिक्षा भी तो हम पाते है।
पाठशाला की घंटी बजने से लगता है
कि मिल गयी आज़ादी कक्षा के अनुशासन से।
पर आजीविका की दौड़ में दौड़ने के बाद,
सोचते है की क्यों छूट गए हम पाठशाला के पालन से।
उम्र की पड़ाव पर नौकरी से निवृत्ति पाने के बाद,
ऐसा आभास होता है की बस !अब हम है आज़ाद।
ज़िम्मेदारियों से, तनाव से, लोगो के दबाव से,
पर फिर कैसे मिलेगी आज़ादी स्वास्थ्य के ठेहराव से?
आज़ादी तो भारत माता को भी मिली थी
अंग्रेज़ो के अनगिनत अत्याचारों से।
पर क्या हमने अपनी माँ की लाज रखी
अपने अच्छे कर्म और सुविचारों से?
कई स्वंतंत्रता सेनानी के बलिदानो से
देश में आया था आज़ादी का नया सवेरा।
पर भ्रष्टाचार, अपराध और स्वार्थी राजनीती के रहते
अब बस है आसमान में काले बादलो का डेरा।
हर साल आज़ादी का जश्न हम मनाते है,
हर घर में तिरंगा भी हम पहराते है।
पर इस आज़ादी का सही अर्थ हम तब समझेंगे,
जब अपने स्वार्थ और कुनीति को छोड़कर
देश की उन्नति की ओर अपने कदम बढ़ाएंगे।
जय हिन्द।।
Additional Professor
Department of Pathology
Kasturba Medical College, Manipal
In Charge Hematology & Clinical Pathology Lab
Kasturba Hospital, Manipal